Month: सितम्बर 2018

क्या वाई-फाई है?

जब मैं कुछ जवानों के साथ एक मिशन दौरे पर जानेवाली थी, मुझ से एक परिचित प्रश्न पूछा गया, “क्या वहाँ वाई-फाई है?” और मैंने उनको आश्वस्त किया कि ज़रूर होगा l इसलिए आप चीखने चिल्लाने की कल्पना कर सकते हैं जब एक रात वाई-फाई डाउन था!

हममें से बहुत लोग अपने स्मार्ट फोन से दूर होने पर चिंतित हो जाते हैं l और जब हमारे पास आई फोन या एंड्राइड फोन होता है, हम उसके स्क्रीन पर आँखें गड़ाए रहते हैं l

अनेक बातों की तरह, इंटरनेट और वे सब बातें जिन तक वह हमें पहुँच देता है ध्यान भटकाव है या आशीष l यह हम पर निर्भर करता है कि हम उसके साथ क्या करते हैं l नीतिवचन में हम पढ़ते हैं, “समझनेवाले का मन ज्ञान की खोज में रहता है, परन्तु मुर्ख लोग मूढ़ता से पेट भरते हैं” (15:14) l

परमेश्वर के वचन की बुद्धिमत्ता को अपने जीवनों में लागू करने के विषय, हम खुद से पूछ सकते हैं :  क्या हम दिन भर अपने सोशल नेटवर्क को देखते रहते हैं? जिन बातों की हम लालसा करते हैं यह उसके विषय क्या कहता है? और क्या वे बातें जो हम ऑनलाइन पढ़ते या देखते हैं विवेकपूर्ण जीवन को प्रोत्साहित करता है (पद.16-21), या हम कचरा अर्थात् व्यर्थ बातें, झूठी निंदा, भौतिकता, या यौन सम्बन्धी अपवित्रता का भक्षण कर रहे हैं?

जब हम पवित्र आत्मा के कार्य के प्रति खुद को समर्पित करते हैं, हम अपने मन/मस्तिष्क को “सत्य, आदरणीय, और उचित, पवित्र, सुहावनी, मनभावनी” बातों से पूर्ण कर सकते हैं (फिलिप्पियों 4:8) l परमेश्वर की बुद्धिमत्ता से हम उसको आदर देने हेतु अच्छे चुनाव कर सकते हैं l

वह हमारा नाम जानता है

जब मैं न्यू यॉर्क में नेशनल सेप्टेम्बर 11 मेमोरियल घूमने गया, मैंने जल्दी से दो कुण्डों/तालों (Twin Reflecting Pools) की तस्वीर खींच ली l इन दोनों कुण्डों के बीच, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर आक्रमण में मारे गए लगभग 3,000 लोगों के नाम ताम्बे की पट्टियों पर उकेरी हुई हैं l ध्यान से देखने पर मैंने एक नाम के ऊपर एक हाथ की तस्वीर भी देखी l अनेक लोग यहाँ आकर एक नाम को छूकर किसी को याद करते हैं जो उनका प्रिय था l

अक्सर परमेश्वर के लोगों के उससे दूर चले जाने के बावजूद भी, यशायाह नबी उनको उसके अचल प्रेम के विषय याद दिलाता है l प्रभु कहता है, “मत डर, क्योंकि मैंने तुझे छुड़ा लिया है; मैं ने तुझे नाम लेकर बुलाया है, तू मेरा ही है” (यशायाह 43:1) l

भजन 23 में दाऊद लिखता है, “चाहे मैं घोर अन्धकार से भरी हुई तराई में होकर चलूँ, तौभी हानि से न डरूँगा; क्योंकि तू मेरे साथ रहता है; . . . निश्चय भलाई और करुणा जीवन भर मेरे साथ साथ बनी रहेंगी; और मैं यहोवा के धाम में सर्वदा वास करूँगा” (पद.4 ,6) l

परमेश्वर हमें कभी नहीं भूलता है l चाहे हम कहीं भी हों या कैसी भी स्थिति में हों, वह हमारा नाम जानता है और अपने अचल प्रेम में थामे रहता है l

कैसे दृढ़ रहें

बहुत ही ठंडा दिन था, और मेरा ध्यान अपनी गरम कार से गरम भवन/इमारत में प्रवेश करने पर लगा था l अगले पल मैं धरती पर था, मेरे घुटने अन्दर को मुड़े हुए थे और मेरे पैरों का निचला भाग बाहर की ओर था l कुछ भी टूटा नहीं था, किन्तु मुझे दर्द बहुत था l  समय के साथ दर्द बढ़ना ही था और अनेक सप्ताह के बाद ही मैं स्वस्थ हो पाता l

हममें से कौन है जो कभी नहीं गिरा है? कितना अच्छा होता यदि हम किसी वस्तु या व्यक्ति के सहारे से हमेशा अपने पैरों पर खड़े रह पाते? भौतिक/शारीरिक भाव में कभी न गिरने की कोई गारंटी नहीं होने के बावजूद, एक व्यक्ति है जो इस जीवन में मसीह को आदर देने और स्वर्ग में उसके समक्ष आनंदपूर्वक खड़े होने की हमारी कोशिश में हमें मदद देने के लिए तैयार है l

हर दिन हम परीक्षाओं (और झूठी शिक्षाओं) का सामना करते हैं जो हमें दिशाविहीन करने, भ्रमित करने, और उलझाने का प्रयास करती हैं l मगर अंत में हम अपने प्रयासों के द्वारा इस संसार में चलते हुए अपने पैरों पर खड़े नहीं रहते हैं l यह जानना अत्यधिक आश्वस्त करनेवाली बात है, जब हम क्रोधित आवाज़ में बोलने की जगह शांति बनाए रखते हैं, झूठ के स्थान पर ईमानदारी का प्रयास करते हैं, घृणा के स्थान पर प्रेम, या गलती के स्थान पर सच्चाई का प्रयास करते हैं – हम खड़े रहने के लिए परमेश्वर की सामर्थ्य का अनुभव करते हैं (यहूदा 1:24) l और मसीह के दूसरे आगमन पर जब हम परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त करेंगे, हम जो प्रशंसा वर्तमान में उसके थामनेवाले अनुग्रह के लिए करते हैं वह अनंत तक गूंजेगा (पद.25) l

मसीह की सुगंध

मौसम धूल भरा और बहुत गर्म था जब बॉब बस की यात्रा करके अपने घर से बहुत दूर एक शहर पहुँचा l वह उस दिन भर की यात्रा के बाद थक चुका था और धन्यवादित था कि वहाँ रहनेवाले अपने मित्रों के मित्र के साथ रात का भोजन कर सकेगा l उन्होंने उसका स्वागत किया, और तुरन्त उसे आराम महसूस हुआ l उसको आभास हुआ वह घर में, आराम से, सुरक्षित, और सम्मानित है l

बाद में, बॉब को इस अपरिचित स्थान में इतनी शांति मिलने का कारण 2 कुरिन्थियों में मिल गया l प्रेरित पौलुस के अनुसार परमेश्वर का अनुसरण करनेवालों के पास “मसीह की सुगंध” है l “यही बात थी!” बॉब ने खुद से कहा l उसके मेज़बान मसीह “की तरह खुशबूदार” महक रहे थे l

पौलुस जब कहता है कि परमेश्वर अपने लोगों को मसीह में “जय के उत्सव में” लिए फिरता है, और अपने ज्ञान की सुगंध हर जगह फैलाता है, उसका सन्दर्भ प्राचीन संसार की एक प्रथा से थी l विजयी सेना मुख्य सड़क पर मार्च करते समय धूप जलाती थी l उनके समर्थकों के लिए, यह आनंद था l उसी तरह, पौलुस कहता है कि परमेश्वर के लोग विश्वास करनेवालों तक सुगंथ पहुंचाते हैं l यह हम खुद उत्पन्न नहीं करते हैं, किन्तु परमेश्वर देता है जब हम उसका ज्ञान फैलाते हैं l

बॉब मेरे पिता हैं, और वे चालीस वर्ष पूर्व उस शहर को गए थे, किन्तु उसे भूल नहीं पाए l आज भी वह मसीह की तरह सुगन्धित उन लोगों की कहानी बताते फिरते हैं l

परमेश्वर के साथ वास्तविक रहना

मैं अपने सिर को झुकाकर, अपनी आँखों को बंद करके, अपने हाथों को जोड़कर प्रार्थना करना आरम्भ कर देता हूँ l “प्रिय परमेश्वर, मैं आपके सामने एक बच्चे की तरह आता हूँ l मैं आपकी सामर्थ्य और भलाइयों को स्वीकार करता हूँ . . . l”  अचानक, मेरी आँखें खुल जाती हैं l मुझे याद आता है कि मेरे बेटे ने इतिहास के प्रोजेक्ट को पूरा नहीं किया है, जो उसको कल दिखाना है l स्कूल के बाद उसे बास्केटबाल गेम भी खेलना है, और मैं कल्पना करता हूँ कि वह मध्य रात्रि तक जागकर अपना गृह कार्य पूरा कर रहा है l इससे मैं चिंतित हो जाता हूँ कि कहीं थकान से उसे बुखार न आ जाए!

सी.एस. लयूईस प्रार्थना में विकर्षण के विषय अपनी पुस्तक स्क्रूटेप लेटर्स  में लिखते हैं l उन्होंने ध्यान दिया कि हमारे मस्तिष्क के भटकने पर, हम अपनी पूर्व की प्रार्थना में लौटने के लिए अपनी इच्छाशक्ति का उपयोग करते हैं l लयूईस यद्यपि इस परिणाम पर पहुँचते हैं, कि उस विकर्षण को [अपनी] वर्तमान समस्या के रूप में स्वीकार करना बेहतर होगा और उसे [परमेश्वर] के आगे [रखकर], उसे अपनी प्रार्थना का मुख्य विषय बना लेना चाहिए l”

प्रार्थना में भटकाव लानेवाली एक स्थायी चिंता अथवा एक पापी विचार भी परमेश्वर के साथ हमारी चर्चा का केंद्रबिंदु बन सकता है l जब हम परमेश्वर से बातचीत करते हैं उसकी इच्छा है कि हम वास्तविक बनकर उसे अपनी गहरी चिंता, भय, और संघर्ष बताएं l वह हमारी बातों से चकित नहीं होता है l वह एक घनिष्ट मित्र की देखभाल की तरह हमारा ध्यान रखता है l इसीलिए हम अपनी सारी चिंता और बेचैनी उस पर डालने में उत्साहित होते हैं – क्योंकि उसको हमारा ध्यान है (1 पतरस 5:7) l  

न बदलनेवाला प्रेम

मैं हाई स्कूल में पढ़ते समय विश्वविद्यालय के टेनिस टीम में खेलता था l मैं अपने किशोरावस्था में अपने घर से दो घर दूर एक टेनिस कोर्ट में घंटों खेलकर अपने कौशल का विकास करता था l

पिछली बार जब मैं उस शहर में गया, मैं आशा से उस टेनिस कोर्ट में दूसरों को खेलते हुए और कुछ पलों के लिए अपनी पुरानी यादें ताज़ी करने गया l किन्तु अब वे टेनिस कोर्ट जो मेरी यादों में बहुत परिचित थे, वहाँ नहीं थे l उनके स्थान पर एक खाली मैदान था, जिसमें उगे हुए घास कभी-कभी हवा से लहराते रहते थे l

उस दोपहर की बात मेरे मन में बैठ गयी जो जीवन की अल्पता/लघुता याद दिलाती है l एक स्थान जहाँ मैंने अपने युवावस्था की शक्ति जो अब मुझ में नहीं है खर्च की थी! उस अनुभव के विषय विचार करते हुए इस सच से मेरा सामना हुआ, जो वृद्ध राजा दाऊद कहता है : “मनुष्य की आयु घास के समान होती है, वह मैदान के फूल के समान फूलता है, जो पवन लगते ही ठहर नहीं सकता, और न वह अपने स्थान में फिर मिलता है l परन्तु यहोवा की करूणा उसके डरवैयों पर युग युग और उसका धर्म उनके नाती-पोतों पर भी प्रगट होता रहता है” (भजन 103:15-17)

हमारी उम्र बढती जाती है और हमारे चारोंओर का संसार बदल भी जाएगा, किन्तु परमेश्वर का प्रेम नहीं बदलता है l उसकी ओर मुड़नेवाले उसकी देखभाल के विषय निश्चित रहें l 

ताकत लगाना

शरीर को गठीला बनानेवाले प्रतिस्पर्धी खुद को कठोर प्रशिक्षण क्रम से गुजरने देते हैं l पहले के कुछ महीनों में, वे आकार और ताकत बढ़ाने में लगाते हैं l जैसे-जैसे प्रतिस्पर्धा निकट आता हैं, वे अपना ध्यान शरीर के अतिरिक्त चर्बी को कम करने में लगाते हैं जिससे उनकी मांश पेशियाँ दिखाई दे सकें l प्रतिस्पर्धा से पहले अंतिम कुछ दिनों में, मांश पेशियों के स्पष्ट दिखाई देने के लिए वे कम पानी पीते हैं l पोषण कम लेने के कारण, प्रतिस्पर्धा के दिन ताकतवर दिखाई देने के बावजूद, प्रतिस्पर्धी अपने सबसे बलहीन अवस्था में होते हैं l

2 इतिहास 20 में, हम विपरीत सच्चाई देखते हैं : परमेश्वर की सामर्थ्य का अनुभव करने के लिए अपनी बलहीनता को पहचानना l “लोगों ने यहोशापात से कहा, “एक बड़ी सेना आपके विरुद्ध आक्रमण करने आ रही है l” इस कारण उसने खुद को और अपने सारे लोगों को पोषण/भोजन से वंचित करके “पूरे यहूदा में उपवास का प्रचार करवाया” (पद.3) l उसके बाद उन्होंने परमेश्वर से सहायता मांगी l अंत में अपनी सेना को इकठ्ठा करने के बाद, यहोशापात ने गायकों को नियुक्त किया जो उसकी सेना के आगे-आगे परमेश्वर की प्रशंसा करते थे (पद.21) l जब वे गाकर स्तुति करने लगे,  प्रभु ने “लोगों पर जो यहूदा के विरुद्ध आ रहे थे, घातकों को बैठा दिया और वे मारे गए” (पद.22) l

यहोशापात का निर्णय परमेश्वर में उसके गहरे भरोसे को प्रगट कर रहा था l उसने जानबूझकर मनुष्य और सेना के कौशल पर भरोसा नहीं करने का चुनाव किया किन्तु इसके बदले परमेश्वर पर भरोसा किया l अपने संघर्षों/परीक्षाओं में खुद पर भरोसा न करके, हम उसकी ओर फिरें और उसे अपनी ताकत बनने दें l

पुल निर्माण

हमारे पड़ोस में, हमारे घर के चारोंओर कंक्रीट की ऊँची दीवारें हैं l इनमें से कई एक दीवारों के उपरी भाग पर कटीले तार लगे हैं जिनमें विद्युत् प्रवाहित होती है l उद्देश्य? चोरों को दूर रखने के लिए l

हमारे इलाके में अक्सर विद्युत् कटौती की समस्या रहती है l इससे सामने के फाटक की घंटी नहीं बजती है l इसके कारण विद्युत् कटौती के समय कोई भी आगंतुक को चिलचिलाती धुप और मूसलाधार बारिश में बाहर खड़े रहना पड़ सकता है l घंटी बजने के बाद भी, आगंतुक को पहचानना ज़रूरी होता है l हमारी दीवारों का उद्देश्य अच्छा है, किन्तु वे भेदभाव की दीवारें भी बन सकती हैं – बावजूद इसके कि आगंतुक बिना अधिकार के प्रवेश करनेवाला नहीं है l

कूँए पर यीशु से मुलाकात करनेवाली स्त्री भी इस प्रकार के भेदभाव का सामना कर रही थी l यहूदियों को सामरियों से कुछ लेना देना नहीं था l यीशु के उससे पानी मांगने पर, उसने कहा, “तू यहूदी होकर मुझ सामरी से पानी क्यों मांगता है?” (यूहन्ना 4:9) l यीशु से बात करते हुए उसने जीवन परिवर्तन का अनुभव किया जिससे वह और उसके पड़ोसी प्रभावित हो गए (पद.39-42) l यीशु वह पुल/सेतु बन गया जिससे शत्रुता और पक्षपात की दीवारें टूट गयीं l

भेदभाव करने का प्रलोभन वास्तविक है, जिसे हमें अपने जीवनों में पहचानना होगा l जिस प्रकार यीशु ने दिखाया, हम नागरिकता, सामाजिक दर्जा, अथवा लोकमत/प्रसिद्धि से ऊपर उठकर सभी लोगों तक पहुँच सकते हैं l वह पुल/सेतु बनाने(जोड़ने) आया l

तारों के परे

2011 में, द नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एसोसिएशन ने अन्तरिक्ष खोज(अनुसन्धान) के तीस वर्ष पूरे होने का जश्न मनाया l उन तीन दशकों में, 355 से अधिक लोग अन्तरिक्ष यानों से अन्तरिक्ष में गए  और अंतर्राष्ट्रीय अतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने मे सहायता की l पाँच अंतरिक्ष यानों के सेवामुक्त होने के बाद, नासा(NASA) ने अपना ध्यान गुरुत्वकर्षी और चुम्बकीय क्षेत्र के परे अनुसन्धान पर केन्द्रित कर दिया है l

मानव जाति ने सृष्टि/कायनात की विशालता का अध्ययन करने के लिए, बड़ी मात्रा में धन और समय का निवेश किया है, जिसमें कुछ अन्तरिक्ष यात्रियों की मृत्यु भी शामिल है l  इसके बावजूद हम परमेश्वर के वैभव/प्रताप का प्रमाण माप नहीं सकते हैं l

जब हम सृष्टि के सृजक और संभालनेवाले के विषय विचार करते हैं जो प्रत्येक तारे का नाम जानता है (यशायाह 40:26), हम भजनकार दाऊद द्वारा उसकी महानता की प्रशंसा करने का कारण समझ सकते हैं (भजन 8:1) l  परमेश्वर के हाथों(उँगलियों) के निशान “चंद्रमा और तारागण ... [पर हैं] जो . . .[उसने] नियुक्त किये हैं,” (पद.3) l स्वर्ग और पृथ्वी का सृष्टिकर्ता सबके ऊपर राज्य करता है, लेकिन अपने सभी प्रिय बच्चों के निकट रहकर उनसे घनिष्ठता और व्यक्तिगत रूप से प्यार करता है (पद.4) l परमेश्वर ने, प्रेम में जो संसार हमें सौंपा है उसकी देखभाल करने, उसको जानने के लिए के लिए हमें महान शक्ति, उत्तरदायित्व, और अवसर देता है (पद.5-8) l

जब हम रात में आकाश को तारों से भरा देखते हैं, परमेश्वर हमें उसको उत्साह और दृढ़ता से खोजने के लिए आमंत्रित करता है l वह हमारे होंठों से निकली प्रत्येक प्रार्थना और प्रशंसा को सुनता है l